Monday 28 April 2014

छत्रपति शिवाजी महाराज

आंतरराष्ट्रीय मंडीमें दी गई वस्तुओंकी सूचि देखनेपर ‘खोपडे’(सूखा नारियल)के प्रकारोंकी सूचिमें ‘राजापुरी खोपडे' ऐसा विशेष नाम उसमें दर्शाया जाता है । ब्रिटीश व्यापारियोंका राजापुरमें गोदाम था । उन्होंने वहांके व्यापारियोंको अपने वशमें कर उन्हें धनकी लालच दिखाकररिश्वत दी और हमारे किसान बंधुओंसे अत्यंत अल्प दाममें वह खोपडा खरीद लिया । तब परिवहनके साधनं  उपलब्ध नहीं थे । अपने उत्पादोंका अच्छा मोल मिले, इसलिए उत्पाद अन्य मंडीमें भेजनेकी किसानोंकी आर्थिक क्षमता  नहीं थी । इसलिए वे असहाय थे । उन्हें प्रचंड हानि सहनी पडी । उन्होंने छत्रपति शिवाजी महाराजको पत्र लिखकर इस विषयमें सूचित किया ।

        अंग्रेजोंकी वस्तुओंका मूल्य बढकर उसकी बिक्री न हो; इसलिए छत्रपति शिवाजी महाराजने तुरंत अंग्रेजोंकी ओरसे जो वस्तुएं महाराजके प्रदेशमें आ रही थी, उनपर २०० प्रतिशत दंडात्मक आयात शुल्क लगाया । इस घटनासे अंग्रेज हडबडाएं । उनके वस्तुओंकी बिक्री घट गई । अतः अंग्रेजोंने छत्रपति शिवाजी महाराजको पत्र लिखा  कि, ‘हमपर दया करें, सीमाशुल्क अल्प करें ।’ छत्रपति शिवाजी महाराजने तत्काल आज्ञापत्र भेजा , ‘‘मैं शुल्क उठानेके लिए एक ही शर्तपर तैयार हूं । आपने हमारे राजापुरके किसानोंकी जो कुछ भी हानि की हैं, उसका भुगतान  योग्य प्रकारसे करें । तथा उस पूर्तिकी  प्राप्तिसूचना किसानोंकी ओरसे प्राप्त होनेके पश्चात ही मैं दंडात्मक शुल्क निरस्त करूंगा, अन्यथा नहीं ।’’ अंतमें ब्रिटिशोंको पीछे हटना पडा । दूसरे दिनसे उन्होंने व्यापारियोंसे मिलकर उनके द्वारा  सभी किसानोंको उनकी वस्तुओंका उचित मूल्य तथा उसके साथ हानिपूर्तिकी  राशि अदा करना आरंभ किया । तदुपरांत किसानोंने छत्रपति शिवाजी महाराजको उनके हानिकी पूर्ति  होकर अपनी संतुष्टताके विषयमें  सूचित किया । तब जाकर महाराजने सीमाशुल्क निरस्त किया ।

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